कौन था बुलडोजर चालक को झोपड़ी गिराने का आदेश देने वाला,SDM को कब्जा हटाने की इतनी जल्दी क्यों थी?

कानपुर देहात के मड़ौली गांव में सरकारी जमीन पर बनी कृष्ण गोपाल की झोपड़ी गिराने का आदेश बुलडोजर चालक को देने वाला कौन था। यह भले ही पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों के बीच अब तक पहेली बना है, लेकिन मौके पर मौजूद गांव वाले उसके बारे में जानते हैं।झोपड़ी गिराने का आदेश देने वाला यह शख्स एक प्रशासनिक अफसर का खास सरकारी कर्मचारी बताया जा रहा है।ग्रामीणों का कहना है कि जांच होगी तो पूरी घटना का जिम्मेदार खुद ब खुद सामने आ जाएगा। मड़ौली गांव में कृष्ण गोपाल की सरकारी जमीन पर बनी झोपड़ी और अन्य कब्जे हटाने के लिए सोमवार को निलंबित एसडीएम ज्ञानेश्वर प्रसाद के नेतृत्व में राजस्व व पुलिस की टीम गई थी। टीम के टारगेट में सरकारी जमीन पर बनी कृष्ण गोपाल की झोपड़ी को गिराना था।जिस जगह पर झोपड़ी बनी थी, वहां तक बुलडोजर के पहुंचने का रास्ता नहीं था। इसलिए अफसरों ने पहले हैंडपंप और फिर धार्मिक चबूतरा तोड़ा। इसके बाद अफसर बुलडोजर के साथ आगे बढ़े। एसडीएम के आदेश पर कृष्ण गोपाल के परिवार के कुछ लोग झोपड़ी से सामान निकाल रहे थे। गैस चूल्हा, सिलिंडर और कुछ अन्य सामान निकाला। उसी दौरान आशियाना उजड़ता देख कृष्ण गोपाल की पत्नी प्रमिला और बेटी नेहा दौड़कर झोपड़ी के भीतर चलीं गईं। उनके दरवाजा बंद करने पर महिला और पुरुष पुलिसकर्मी अनहोनी के डर से दौड़े। कुछ ने आगे और कुछ ने पीछे से किसी तरह मां-बेटी को झोपड़ी से निकालने की कवायद शुरू की।उसी दौरान टीम में शामिल एक प्रशासनिक अफसर के खास सरकारी कर्मचारी ने बुलडोजर चालक को झोपड़ी गिराने का आदेश दे दिया। इसके बाद कुछ और लोग चिल्लाए गिरा दो झोपड़ी। इसके बाद चालक दीपक ने बुलडोजर से झोपड़ी गिराई, तभी भीतर आग लग गई।भीतर से धुआं और लपटें निकलती देख अफसर और टीम में शामिल लोगों में अफरातफरी मच गई और देखते ही देखते अफसरों के सामने मां-बेटी जिंदा जल गईं। अब पुलिस और प्रशासनिक अफसरों के सामने जांच के विषय यह है कि आखिर कौन था बुलडोजर चालक को झोपड़ी गिराने का आदेश देने वाला। हालांकि इसके बारे में ग्रामीण जानते हैं, लेकिन वह नाम बताने को राजी नहीं है।मड़ौली गांव में सरकारी जमीन से कृष्ण गोपाल दीक्षित का कब्जा हटाने की एसडीएम ज्ञानेश्वर प्रसाद को आखिर इतनी जल्दी क्यों थी। 13 फरवरी को डीएम के पास गांव के कुछ लोग कृष्ण गोपाल के सरकारी जमीन पर कब्जा करने की शिकायत लेकर जाते हैं। डीएम एसडीएम मैथा ज्ञानेश्वर प्रसाद को शिकायत पत्र भेजती हैं। एसडीएम उसी दौरान अकबरपुर सीओ को पत्र लिखकर सरकारी जमीन खाली कराने के लिए फोर्स मांगते हैं।फिर टीम गठित कर रूरा थाने से फोर्स लेकर कब्जा गिराने पहुंच जाते हैं। फिर उनके सामने ही कृष्ण गोपाल की पत्नी न बेटी जिंदा जल जाती है। मां-बेटी की मौत के बाद सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर कृष्ण गोपाल से सरकारी जमीन खाली कराने की एसडीएम को इतनी जल्दी क्यों थी।मौके की नजाकत देख डीएम नहीं गईं घाट मां-बेटी की मौत को लेकर परिजनों और ग्रामीणों में डीएम के प्रति नाराजगी दिखी। परिजनों का आरोप है कि वह लोग अपनी फरियाद लेकर डीएम और एसपी के पास गए, लेकिन किसी ने उनकी नहीं सुनी। एसपी ने तो डांट कर भगा दिया था। राज्यमंत्री प्रतिभा शुक्ला के डीएम से बात करने के बाद फिर वह लोग अपनी अर्जी लेकर डीएम के पास गए थे। तब भी सुनवाई नहीं हुई। बिना किसी नोटिस के अफसर कब्जा गिराने पहुंच गए। प्रशासन की इस कार्यवाही से कृष्ण गोपाल व उसके परिजनों के साथ ही ग्रामीणों ने नाराजगी है। इसी चलते डीएम घटना के दिन सोमवार को भी घटनास्थल पर आईजी व मडंलायुव्क के पहुंचने पर गईं थीं। बुधवार को डीएम पीड़ित परिवार को सांत्वना देने कानपुर नगर गईं। वहां पहुंचन पर उन्हें लोगों की नाराजगी का पता चला तो वह बिठूर घाट मेंं हो रहे मां-बेटी के अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हुईं।अंतिम संस्कार कर लौटे परिजन, घटना याद कर सुबकते रहे,मां-बेटी का अंतिम संस्कार करने के बाद भी मड़ौली गांव में मातम सा माहौल रहा। प्रमिला और नेहा का अंतिम संस्कार करके लौटे परिजन घर के बाहर और भीतर बैठे सुबकते रहे। पीड़ित परिवार को जब लोग सांत्वना देने पहुंचे, तो उन लोगों का दर्द छलक पड़ा। प्रमिला के घर सांत्वना देने आने वालों का सिलसिला देर रात तक चलता रहा। इधर, गांव में पहले की अपेक्षा चहल पहल नजर नहीं आई। हर तरफ पुलिस और पीएसी के जवान गश्त करते दिखाई दिए।

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