कामना दो वस्तुओं की होती है “श्रीकृष्ण की और धन की”  आचार्य बृजेश मणि त्रिपाठी। 

 

 

विनय मिश्र, संवाददाता जिला।

, बरहज देवरिया।

बरहज तहसील क्षेत्र के अंतर्गत ग्राम कटियारी में चल रहे श्रीमद् भागवत कथा के छठवें दिन आचार्य बृजेश कुमार त्रिपाठी ने श्रीमद् भागवत की कथा का रसपान कराते हुए कहा कि

श्रीकृष्ण के सिवा जो कुछ भी चाहा जाय, यह सब धन के अन्तर्गत है, उसकी ‘धन’ संज्ञा है।

श्रीकृष्णार्थीति धनार्थीति श्रोता वक्ता द्विधा मतः।

यथा वक्ता तथा श्रोता तत्र सौख्यं विवर्धते॥

श्रोता और वक्ता भी दो प्रकार के माने गये हैं, एक श्रीकृष्ण को चाहने वाले और दूसरे धन को,जैसा वक्ता, वैसा ही श्रोता भी हो तो वहाँ कथा में रस मिलता है, अत: सुख की वृद्धि होती है।

उभयोर्वैपरीत्ये तु रसाभासे फलच्युतिः।

किन्तु कृष्णार्थिनां सिद्धिः विलम्बेनापि जायते॥

यदि दोनों विपरीत विचार के हों तो रसाभास हो जाता है, अत: फल की हानि होती है। किन्तु जो श्रीकृष्ण को चाहने वाले वक्ता और श्रोता हैं, उन्हें विलम्ब होने पर भी सिद्धि अवश्य मिलती है।

धनार्थिनस्तु संसिद्धिः विधिसंपूर्णतावशात् ।

कृष्णार्थिनोऽगुणस्यापि प्रेमैव विधिरुत्तमः॥

धनार्थी को तो तभी सिद्धि मिलती है, जब उनके अनुष्ठान का विधि- विधान पूरा उतर जाय, श्रीकृष्ण की चाह रखने वाला सर्वथा गुणहीन हो और उसकी विधि में कुछ कमी रह जाय तो भी, यदि उसके हृदय में प्रेम है तो, वही उसके लिये सर्वोत्तम विधि है।

कथा के दौरान शिवदास तिवारी, अरविंद तिवारी, चित्रकूट तिवारी, अशोक तिवारी, त्रिपुरारी तिवारी, विकास तिवारी ,मनोज तिवारी, दिनेश तिवारी ,ठाकुर तिवारी ,दीनानाथ तिवारी ,घनानंद तिवारी ,रंजना देवी, शांति देवी, पूनम देवी, प्रेम नारायण तिवारी, उमेश, देवेंद्र, छोटे, सत्येंद्र जितेंद्र ,सानू, पियूष, प्रखर ,महावीर, रुद्रांश ,आयुष ,शाश्वत ,बिट्टू ,आशीष, मनीष ,भोला ,जीसु सहित क्षेत्र तमाम श्रद्धालु भक्तजन उपस्थित रहे।

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