कलमकार हूँ ,मैं सच ही लिखता हूँ, तुम मेरी बातों का बुरा मानना छोड़ दो

कलमकार हूँ ,मैं सच ही लिखता हूँ,
तुम मेरी बातों का बुरा मानना छोड़ दो।
सच लिखने से पहले इजाज़त लूंगा तुमसे,
तुम ये ग़लतफहमियां पालना छोड़ दो ।
क्या बिक जाऊंगा चंद सोने के सिक्कों में ,
अरे छोड़ो तुम मेरी कीमत आंकना छोड़ दो ।
ठीक है कभी एक वक़्त की ही रोटी मिलेगी,
तुम मेरे निवालों का हिसाब लगाना छोड़ दो।
करूँगा पर्दाफाश सब गुनाहों और घोटालों का,
सच पे झूठ की कालिख लगाना छोड़ दो।
कभी काटा जाऊंगा कभी रौंदा भी जाऊंगा,
कभी ज़हर तो कभी गोलियां भी खाऊंगा ,
हां मारा जाऊंगा, पर क्या ख़ामोश हो जाऊंगा,
रोक लोगे मुझे, ये झूठे ख़्वाब सजाना छोड़ दो ।
सीने में लगी गोलियों में ,जिस्म मेंधसे खंजर में
कभी खून में फैले ज़हर में ,चीत्कार सुनाई देगी मेरी
तुम मेरी आवाज को कफ़न में दबाना छोड़ दो।
सच के खज़ाना लेकर घूमता हूँ, गर न लौट पाया?
घरवालों मेरे इंतेज़ार में नज़रे बिछाना छोड़ दो।
मेरे खून की धार ही बनेगी स्याही मेरी कलम की ,
समझौता कर लूंगा हालात से ये आस लगाना छोड़ दो।
कलमकार हूँ सच ही लिखता हूँ और सच ही लिखूंगा,
झूठ के तराजू में मुझे तुम तौलना छोड़ दो।।

सच के लिए लड़ने वाले सभी कलमकारों को समर्पित..
जिनमें से कुछ के ही नाम हम जानते हैं।
पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्य करने वाले सभी ऊर्जावान सक्रिय व राष्ट्र के विकास में अहम योगदान देने वाले पत्रकार बंधुओं एवं बहनों को राष्ट्रीय प्रेस दिवस की ढेंरो शुभकामनाएं..

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