‘ऑपरेशन पोलो’ से शुरू, आत्मसमर्पण पर खत्म; क्या है हैदराबाद की आजादी की कहानी?

Started with 'Operation Polo', ended with surrender; What is the story of Hyderabad's independence?

नई दिल्ली: देश की आजादी के महज महीने बाद 13 सितंबर 1948 को भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन पोलो’ की शुरुआत की थी और रजाकारों को उनकी औकात दिखाई। आजादी के बाद संयुक्त और मजबूत भारत का सपना पूरा करना आसान नहीं था। सरदार वल्लभ भाई पटेल पर जिम्मेदारी थी, देश को एकजुट करने की और उन्होंने इसे बखूबी निभाया। तत्कालीन सरकार 500 से अधिक रियासतों को एकजुट करने में सफल रही, लेकिन कुछ राज्यों को अपने साथ जोड़ना भारत के लिए आसान नहीं था।

स्वतंत्रता से पहले का ब्रिटिश भारत स्वतंत्र राजवाड़ों और प्रांतों से मिलकर बना था, जिन्हें भारत या पाकिस्तान में शामिल होने अथवा स्वतंत्र रहने के विकल्प दिए गए थे। जिन लोगों ने निर्णय लेने में काफी समय लगाया उनमें से एक हैदराबाद के निजाम भी थे।

अधिकतर रियासतें तो विलय के लिए राजी हो गईं, लेकिन हैदराबाद ने विलय से इनकार कर दिया और अपना अलग देश बनाने की ठानी। उस समय हैदराबाद में 85 प्रतिशत आबादी हिंदुओं की थी, जबकि शेष मुस्लिम थे। लेकिन एक सोची-समझी साजिश के तहत सभी ऊंचे पदों पर मुसलमानों का कब्जा था। यहां तक कि रियासत में ज्यादातर टैक्स हिंदुओं से ही वसूले जाते थे। बहुसंख्यकों पर लादे इन्हीं करों से शाही खजाना बढ़ता चला गया।

हिंदुओं का आर्थिक तौर पर शोषण तो हो ही रहा था, साथ ही उनको शारीरिक उत्पीड़न का भी शिकार होना पड़ा रहा था। निजाम की सरपरस्ती में रजाकार (निजाम के सैनिक) आपे से बाहर हो रहे थे। खुलेआम कत्लेआम मचा रखा था। जबरन धर्म परिवर्तन कराया जा रहा था। यह अत्याचार बढ़ता चला गया और एक दिन ऐसा आया जब हिंदुओं ने इसके खिलाफ आवाज उठाई। भारत को एकजुट रखने के लिए हैदराबाद का भारत में विलय अनिवार्य हो गया।

इस बीच 11 सितंबर 1948 को पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना की मौत हुई और उसके एक दिन बाद यानि 12 सितंबर को भारतीय सेना ने हैदराबाद में सैन्य अभियान शुरू किया। यहीं से होती है ऑपरेशन पोलो की शुरुआत।

मेजर जनरल जे.एन. चौधरी के नेतृत्व में भारतीय सेना 13 सितंबर 1948 की सुबह 4 बजे हैदराबाद में अभियान शुरू कर चुकी थी। महज पांच दिन के अंदर 17 सितंबर 1948 की शाम 5 बजे निजाम उस्मान अली ने रेडियो पर संघर्ष विराम और रजाकारों पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की। इसके साथ ही, हैदराबाद में भारत का सैन्य अभियान समाप्त हो गया।

पांच दिन तक चले इस ऑपरेशन के बाद 17 सितंबर की शाम 4 बजे हैदराबाद रियासत के सेना प्रमुख मेजर जनरल एल. ईद्रूस ने अपने सैनिकों के साथ भारतीय मेजर जनरल जे.एन. चौधरी के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। इसके बाद हैदराबाद रियासत के भारतीय संघ में विलय का शंखनाद हुआ।

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