Mumbai news:दादर में युवाओं का सम्मेलन संपन्न
रिपोर्ट-अजय उपाध्याय
मुंबई: दादर में गत दिनों युवाओं और बेरोजगार युवकों का सम्मेलन संपन्न हुआ। इस अवसर को भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं मुंबई महानगरपालिका के पूर्व उपमहापौर बाबूभाई भवानजी ने देश की युवा पीढ़ी से नौकरी पाने वाले की बजाय नौकरी देने वाला बनने की अपील की है। युवा सम्मेलन को संबोधित करते हुए भवानजी ने कहा कि अमेरिका, चीन, जापान जैसे विकसित देशों में युवाओं ने यह काम कर दिखाया है। वहां के युवाओं की सोच और प्रतिबद्धता ने उन देशों को विकसित राष्ट्र की श्रेणी में खड़ा करने में महती भूमिका निभाई है। हमारे देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दस वर्ष पूर्व जब सत्ता संभाली, तो उन्होंने युवाओं को उद्योग-धंधों की ओर प्रोत्साहित करने की दिशा में काम करना शुरू किया। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषणों में बार-बार युवाओं से नौकरी पाने वाला नहीं, बल्कि नौकरी देने वाला बनने का आह्वान किया है। जिसके लिए कौशल्य विकास, स्टार्ट अप, मुद्रा योजना जैसी तमाम योजनाओं का क्रियान्वयन किया। लिहाजा देश के युवा कुछ हद तक उद्योग-धंधों की ओर आकर्षित हुए, और कारोबार जगत में अपने हुनर के बल पर कामयाबी का डंका बजा रहे हैं। भवानजी ने कहा कि अमेरिका, रूस, इजरायल जैसे देशों में महज भारत ही नहीं तमाम देशों के लाखों युवा उच्च शिक्षा के लिए जाते हैं। उनकी पढ़ाई तथा रहन-सहन पर प्रतिवर्ष लाखों रूपए खर्च होते हैं। लिहाजा अरबों रूपए की कमाई उक्त देशों को महज बाहरी विद्यार्थियों से ही हो रही है, जिसमें भारतीय छात्रों का भी बड़ा योगदान है। जिसमें अधिकांश भारतीय विद्यार्थी तो शिक्षा पूरी करने के बाद वहीं बस जाते हैं, अर्थात हमारे देश की युवा शक्ति विदेशी देशों के विकास में बड़ा योगदान दे रही है। यह हमारे देश के शासन-प्रशासन के लिए मंथन का विषय है। उन्होंने कहा कि विदेशों के शैक्षणिक संस्थानों की तर्ज पर हमारे देश में भी चिकित्सा, प्रबंधन तथा तकनीकी शिक्षण संस्थानों की हर जिलों में शुरू करने की जरूरत है,। आज हिंदुओं के ज्यादातर पुश्तैनी धंधों पर मुस्लिम कारीगरों ने कब्जा कर लिया है। उन्होंने कहा कि हिंदुओं,के आज कारीगरी के हर क्षेत्र में मुसलमानों का कब्जा बढ़ता ही जा रहा है और हिंदुओ के लड़के जाति की डुगडुगी बजाकर ग्रेजुएट बनकर बेरोजगार घूम रहे हैं। न कोई हुनर है, न कोई टेलेंट है, जबकि हिंदू एकमात्र ऐसी कौम है, जहां हर काम की एक जाति है। फिर भी उस जाति का व्यक्ति 8 हजार महीने की नौकरी कर लेगा, मगर अपने धंधे से उसको लाखों कमाने में शर्म महसूस होती है। उन्होंने कहा कि आज एक दर्जी महीने का लाखों कमाता है, मगर दर्जी के बेटे को एमबीए करके 15 से 25 हज़ार की नौकरी करनी है। बाद में महंगाई का रोना तो रोना ही है। यही हाल नाई, सुतार, बढई, लोहार, पंडित, सोनार, चर्मकार, धोबी इत्यादि सभी हिंदू जातियों का है। फिर कहते है कि हम बेरोजगार हैं।