बलिया शहर के कटहल नाला से उठ रही दुर्गन्ध, अब तक नहीं बन पाया जुहू चौपटी
एनजीटी व पर्यावरण मंत्रालय के उदासीन रवैया के चलते मांस, मछली के आपशिष्ट फेंक बना रहे गन्दा नाला
रिपोर्ट अजीत कुमार सिंह बिट्टू जी ब्यूरो चीफ हिंद एकता टाइम
बलिया : शहर के बीचो-बीच से होकर गुजरने वाला कटहल नाला गर्मी के दिनों में लोगों के लिए परेशानियों का सबक बन चुका है. कटहल नाला से उठ रही दुर्गंध से हर कोई परेशान है. इस कटहल नाला को सुंदरीकारण करके जुहू चौपाटी का मुख्य रूप देने का वादा नगर विधायक दयाशंकर सिंह ने विस चुनाव से पहले किया था. लेकिन वह वादा आज भी पूरा होता नहीं दिख रहा है. ऐसे में लोगों के बीच सवाल उठने लगी है कि लाखों रुपए खर्च के बाद भी कटहल नाला के तलहटी की सफाई नहीं हो सकी. जिसके चलते गर्मी के दिनों में पानी सूखने के चलते कटहल नाला से दुर्गंध उठाना शुरू हो गया है.
सबसे दिलचस्प है कि एनजीटी व पर्यावरण मंत्रालय के उदासीन रवैया के चलते मांस, मछली का कारोबार करने वाले लोग इसमें अपना गलीज प्रतिदिन कटहल नाला में फेंक देते हैं. ऐसे में भीषण गर्मी के चलते सुख रहे कटहल नाला से अब दुर्गंध भी उठनी शुरू हो गई है. ऐसे में लोग कटहल नाला से होकर गुजरने से पहले अपने नाक पर कपड़ा रखने को विवश हो रहे हैं. आलम यह है कि सब कुछ साफ दिखने के बाद भी शासन प्रशासन के अफसर वजनप्रतिनिधि उदासीन बने हुए हैं. इस क्षेत्र में ना तो कोई एनजीटी की गाइडलाइन काम कर रही है और नहीं पर्यावरण विभाग के अधिकारी ही कोई दिलचस्पी दिखा रहे है.यही स्थिति रही तो या कटहल नाला लोगों के लिए संक्रामक बीमारी को न्योता देने वाला नाला बनकर रह जाएगा. जबकि सूबे के राज्य मंत्री व नगर विधायक ने चुनाव जीतने से पूर्व इस कटहल नाला को जुहू चौपाटी के रूप में विकसित करने का दावा किया था. लेकिन यह दावा अब हवा हवाई साबित हो रहा है.
महावीर घाट से निकल कर शहर के पश्चिमी छोर से होते हुए सुरहाताल तक जाने वाला कटहल नाला का अपना ही इतिहास है। कभी इस नाले में लोग नहाते के साथ ही कपड़ा आदि धोने का काम होता था। आज स्थिति यह है कि उस तरफ देखने का भी मन नहीं करता था। इस नाला में बहादुरपुर पुराने पुल व जीराबस्ती के पास पक्का घाट था। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस नाले का कितना महत्व रहा होगा। गंगा में बाढ़ का पानी आने पर इस नाले से पानी सुरहाताल में जाता था।
उधर घाघरा में बाढ़ आने पर पानी सुरहाताल होते ही नाला के माध्यम से गंगा में आता था। इसलिए यह कटहल नाला दोनों तरफ बहता था। अब तो यह पूरी तरह से शहर के गंदा पानी का वाहक बनकर रह गया है। हालत यह है कि इसके किनारे से गुजरने पर बदबू आती है। मुंह पर रूमाल रखकर पैदल गुजरना पड़ता है। प्रशासनिक अधिकारियों की उपेक्षा व जनप्रतिनिधियों के अनदेखी से इसमें शौचालयों का गंदा लाकर गिरा दिया जा रहा है। वहीं मरे हुए पशु भी इस नाले में फेंक दिए जाते है.
कटहल नाला जिसका वास्तविक पुराना नाम कष्टहर नाला है अर्थात कंसर्ट को हरने वाला नाला। वास्तव में कटहल नाला का निर्माण जल जमाव एवं बाढ़ से मुक्ति दिलाने के उद्देश्य से कराया गया था। प्राचीन काल में जब गंगा शंकरपुर एवं बालखण्डीनाथ के स्थान से होते हुए सुरसा ताल क्षेत्र से होकर आगे पूरब दिशा में मुड़कर दह रेवती के पास घाघरा से मिलती थी तो कुछ वर्षों पश्चात जब गंगा नदी का मार्ग परिवर्तित हुआ तो सुरसा ताल एक छाड़न के रूप में प्राकृतिक ताल का रूप ग्रहण कर लिया। इसी दौरान एक श्राप बश जब नेपाल नरेश राजा सूरथ का राज पाट छिन गया और वे कोढ़ी हो गए तो भ्रमण करते हुए इस क्षेत्र में आए और सुरहा ताल क्षेत्र के रमणीय स्थल को देखकर इस क्षेत्र में रहने दें तथा सुरसा के जल में स्नान करने लगे एवं मिट्टी का अपने शरीर में लेपन करने लगे, जिससे वे पूर्णत: स्वस्थ हो गए और उनके मन में इस पवित्र क्षेत्र की तरफ आस्था जगी, फलत: राजा ने सुरसा ताल का उद्धार कराया, इसीलिए इस ताल का नाम राजा सुरत के नाम पर ताल बना जो बाद में अपभ्रंश होकर सुरहा ताल हो गया।
राजा सुरथ ने देखा कि इस ताल में जल जमाव हो जाने से इस क्षेत्र के लोगों को कंसर्ट क्षेलना पड़ रहा है, फलत: उन्होंने गंगा के पुराने प्रवाह मार्ग की खोदाई करके एक नाला का निर्माण कराया, जिसका नाम कष्टहर नाला पड़ा, जो बाद में अपभ्रंश होकर कटहल नाला हो गया। चूंकि यह नाला सुरसा क्षेत्र के अतिरिक्त जल जमाव को गंगा नदी की तरफ प्रवाहित कर देता है एवं बाढ़ के समय गंगा में आए अतिरिक्त जल को सुरहा की तरफ प्रवाहित कर देता है, जिससे जलजमाव एवं बाढ़ दोनों के कंसर्ट से छुटकारा मिलता है.
बता दे बलिया शहर के बीच से होकर गुजरने वाले कटहल नाला का पुराना इतिहास है यह नाला लोगों के घरों के पानी का निकास करने का कार्य करता था. जो बरसात के दिनों में गंगा नदी की पानी को सुरहाताल में पहुंचाना था. जबकि बरसात के बाद इसी कटहल नाला से लोग अपने-अपने खेतों की सिंचाई करते थे. वहीं नगर के घरों के पानी का निकास भी इसी नाला के माध्यम होता था. यह नाला सीधे गंगा नदी में जाकर मिला हुआ था. लेकिन वर्तमान परिवेश में यह कटहल नाला कूड़ा कचरा व गलीज फेंकने का जगह मात्र बनकर रह गया है