सुप्रीम कोर्ट में एक भी मुस्लिम जज का नहीं होना संयोग नहीं है- शाहनवाज़ आलम

संविधान के मूल ढांचे के प्रति अविश्वास रखने वालों की नियुक्ति से न्यायपालिका की छवि खराब होती है।कॉलेजियम व्यवस्था का संदेह के दायरे में आ जाना लोकतंत्र के लिए अच्छे संकेत नहीं

रिपोर्ट: रोशन लाल

लखनऊ:अल्पसंख्यक कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष शाहनवाज़ आलम ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट में भले ही 3 रिक्त पदों को भर कर कुल 34 जजों के कोटे को पूरा कर लिया गया है लेकिन इस लिस्ट से जस्टिस अकील कुरैशी के नाम को बाहर रखने के प्रकरण को हमेशा याद रखा जाएगा।कांग्रेस मुख्यालय से जारी बयान में शाहनवाज़ आलम ने कहा कि 2012 में नियुक्त दो मुस्लिम जजों जस्टिस एमवाई इक़बाल और फकीर मोहम्मद इब्राहिम कलीफुल्ला के 2016 में सेवा निवृत्त हो जाने के बाद से एक भी मुसलमान जज को सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम व्ययवस्था ने नामित नहीं किया जो कॉलेजियम व्यवस्था के धर्मनिरपेक्ष चरित्र पर संदेह उत्पन्न करता है। जबकि त्रिपुरा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस अकील क़ुरैशी वरिष्ठता क्रम में देश के दूसरे सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश थे। लेकिन मोदी सरकार के दबाव में कॉलेजियम ने उनका नाम सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति के लिए नहीं भेजा। इसके लिए उनके सेवा निवृत्त होने तक इंतजार किया गया।शाहनवाज़ आलम ने कहा कि कॉलेजियम किस कदर मोदी सरकार के सामने नतमस्तक है इसे इस तथ्य से समझा जा सकता है कि जस्टिस कुरैशी जब गुजरात हाईकोर्ट मेंकार्यरत थे तब हाईकोर्ट में मुख्य न्यायाधीश का पद खाली था लेकिन कॉलेजियम ने उन्हें वहाँ का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त करने के बजाए उन्हें मुंबई हाईकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त कर दिया गया। इसके एक साल बाद कॉलेजियम ने उन्हें मध्यप्रदेश हाईकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त करने के लिए उनका नाम केंद्र सरकार को भेजा लेकिन सरकार ने नाम स्वीकार नहीं किया। लेकिन सरकार से अपनी लिस्ट पर अधिकार के तहत अड़ जाने के बजाए कॉलेजियम ने नतमस्तक होने का विकल्प चुना। जिसके बाद उन्हें देश के सबसे छोटे हाईकोर्ट त्रिपुरा का मुख्य न्यायाधीश बना दिया गया जो एक तरह से उनका डिमोशन था।उन्होंने कहा कि जस्टिस कुरैशी की गलती सिर्फ़ यही थी कि उन्होंने सोहराबुद्दीन शेख फ़र्ज़ी मुठभेड़ मामले में आरोपी अमित शाह को विधि के अनुसार सीबीआई की हिरासत में भेजा था।शाहनवाज़ आलम ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट देश के संविधान का अभिरक्षक है इसलिए जजों की नियुक्ति के समय यह संज्ञान में ज़रूर रखा जाना चाहिए कि उस व्यक्ति की संविधान के मूल ढाँचे के मूल्यों के प्रति कितनी प्रतिबद्धता है। उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश पंकज मित्तल ने 7 दिसंबर 2021 को सार्वजनिक तौर पर संविधान की प्रस्तावना में सेकुलर शब्द के होने को देश की छवि धूमिल करने वाला बताया था। लेकिन उनके खिलाफ़ कार्यवाई होने के बजाए देश ने देखा कि कैसे उन्हें भी सुप्रीम कोर्ट का जज बना दिया गया। जिससे जन मानस में जजों की छवि खराब हुई।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button