आसान नहीं होती है कलयुग में मनुष्य की जिंदगी पुत्र मांगता है पिता के कर्मों का हिसाब

रिपोर्ट:भगवान उपाध्याय

देवरिया:आसान नहीं होती है कलयुग में मनुष्य की जिंदगी पुत्र मांगता है पिता के कर्मों का हिसाब।जीवन में अनेक प्रकार की सुख दुख आते रहते हैं सबसे कष्ट तब होता है जब व्यक्ति का बाल्यावस्था किसी तरह से समाप्त होने के बाद वह अपने युवावस्था को धारण करता है उसे समय से ही व्यक्ति को अपने विकास की चिंता होने लगती है जो लोग समाज एवं संस्कृति के प्रति निष्ठा रखते हैं अपने कुलगुरु कुल देवी देवता और पुरोहित को मानते हैं वे लोग भारतीय संस्कृति के अनुसार अपने माता-पिता के आदर के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर देते हैं। लेकिन कुछ हमारे समाज इस प्रकार की विडंबना सामने आती है जहां पर पुत्र अपने माता-पिता के कर्मों का हिसाब मांगने लगता है लेकिन वह पुत्र या भूल जाता है कि उसके माता-पिता ठंडा गर्मी बरसात की परवाह न करके अपने बच्चे को पालने में अपना सब कुछ बलिदान कर देता है लेकिन जब वह किसी ऊंचे स्थान पर पहुंचता है तो वह अपने माता-पिता एवं भाई बहनों की प्यार को भूल जाता है और धन के मद में अंधा हो जाता है जिससे ना तो वह अपने माता-पिता का तिरस्कार करता है अपितु वह अपने देवी देवता और गुरु का भी अपमान कर देता हैं और अंत में वैसे व्यक्ति संसार में नाना प्रकार की ठोकरे खाता है तब उसे ज्ञान होता है कि हम अपने माता-पिता के साथ बहुत ही गलत काम किया था।
मध्यमवर्गीय परिवार के लोग हर दिन अपने नए सवेरा होने का इंतजार करते हैं फिर भी अपने बच्चों की भरण पोषण एवं सुविधा में किसी प्रकार की कमी नहीं रखते उनको अपना बुरा दिन इस प्रकार से अच्छा दिखाई देता है जैसे ठंड के समय में ठिठुरा हुआ व्यक्ति अपने बच्चों को कहीं से व्यवस्था करके भोजन करता है और किसी के चद्दर पर लिटाकर घास के झोपड़ी में बैठे सुबह का इंतजार करता है क्योंकि उसे यह पता है कि सुबह होने पर सूर्य की किरण जब हमारे शरीर को लगेगा तो हमारी पूरी ठंडी समाप्त हो जाएगी और फिर वह पूरे दिन और रात एक करके सूर्य की किरण की तरफ देखता रहता है और उसे ठंडी नहीं लगती ठीक उसी प्रकार मध्यम वर्गीय परिवार की लोग अपने दो वक्त की रोटी कभी ऐसा होता है कि नहीं मिलता लेकिन वह अपना दर्द ना तो किसी से कह सकते हैं और ना ही समझ में अपने को किसी से मदद भी मांग सकते हैं क्योंकि उनका अपना स्वाभिमान प्यारा होता है वह अपने स्वाभिमान पर मर मिटे हैं और अपने परिवार और बच्चों के भरण पोषण के लिए अनेक प्रकार के परिश्रम करना पसंद करते हैं लेकिन जब वही बच्चे बड़े होकर किसी अच्छे स्थान पर पहुंचते हैं तो वह अपने माता-पिता से ही उनके कर्मों का हिसाब मांगते हैं हम इस कहानी के माध्यम से सिर्फ यह बताना चाहते हैं कि आप सभी को जितना हो सके अपने माता-पिता का सेवा करना चाहिए क्योंकि प्रभु अगर हम सबके अंदर विद्यमान हैं तो माता-पिता साक्षात ईश्वर और शक्ति हैं यदि हम अपने माता-पिता को दुख देकर चाहे कि हम संसार में सुखी रह लेंगे तो वह मूर्ख ही होगा क्योंकि संसार में क्षणिक सुख तो उसके पास अवश्य होगा लेकिन जिस दिन उसका हिसाब प्रभु के यहां देना होगा उस दिन उसे अपने माता-पिता पर किए गए अत्याचार और अनदर का पश्चाताप होगा अतः समय होते ही आप सभी सचेत हो जाएं और माता-पिता गुरु के साथ किसी भी व्यक्ति का अपने शक्तियों का दुरुपयोग न करें जिससे हम सभी को बाद में पश्चाताप करना पड़े।

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