आजमगढ़:स्वार्थी का प्रेम तभी तक रहता है जब तक उसके स्वार्थ में बाधा नहीं पड़े। श्री ज्ञानचंद्र द्विवेदी

Azamgarh: A selfish person's love lasts only as long as his selfishness is not hindered. Shri Gyanchandra Dwivedi

रिपोर्ट:अमित सिंह

मेहनगर/ आजमगढ़:श्री विष्णुपुराण में भगवान के माता-पिता का जिस रूप में जिस रुप में चित्रण किया गया है, वह भी विचित्र है। नव दंपति विवाह के तत्काल बाद मंगलसूत्र धारण किए बड़े प्रेम और उत्साह के साथ विदा होते हैं। ऐश्वर्यशाली कंस वैभव के साथ पहुंचने के लिए चलता है । घोड़े की बागडोर हाथ में है ।भाई बहन के प्रेम का दृश्य प्रकट हो रहा है ।इतने में आकाशवाणी हुई कंस तेरी मृत्यु देवकी के आठवें गर्भ से है । क्षण भर में सारा प्रेम उड़ गया कंस ने केश पड़कर देवकी को रथ से नीचे खींचा, मारने के लिए समुद्यत।ऐसी स्थिति में देवकी मैया मौन। न कंस से कहती है मुझे छोड़ दो न वसुदेव से कहती है मुझे बचाओ।ऐसी क्षमा,ऐसी शांति,ऐसी समता, ऐसा मौन वस्तुत देवकी को उसे कक्षा में पहुंचा देता है जो भगवान की माता बनने के योग्य हैं । अपने आराध्य पर दृढ़ विश्वास। वासुदेव जी कंस से भिड़े नहीं लड़े नहीं क्योंकि कंस अभिमानी है ।अभिमानी के सामने बल एवं बुद्धि काम नहीं आती ।अभिमानी को तो उसके अभियान का पोषण करके ही जीता जा सकता है। छः संतानों को कंस ने मार डाला सातवें सन्तान के रूप में बलराम जी और आठवीं संतान के रूप में श्री कृष्ण का प्राकट्य हुआ। जब भगवान के आने से पूर्व प्रकृति ने नवद्रव शुद्ध कर लिए।समय सुहावना, दिशाएं निर्मल, आकाश में तारे हीरे की तरह छिटक गए, वायु शीतल मंद सुगंध बहकर सुख का दान करने लगा।अग्नि निर्धूम, नदी का जल निर्मल पृथ्वी मंगलों की खान हो गई। सबके मन में अत्यंत प्रसन्नता। ऋषि देवताओं की आत्मा श्रीकृष्ण के दर्शन के लिए उत्सुक हो गए। भाद्रपदमास,कृष्ण पक्ष, अष्टमी तिथि ,रोहिणी नक्षत्र, बुधवार, वृष लग्न ऐसे शुभ अवसर पर रात्रि के घोर अंधकार को चीरकर महान प्रकाश का उदय हुआ।वासुदेव देवकी शिशुभावापन्न होकर श्री कृष्ण को गोद में लेकर अपलक नेत्रों से निहारते हैं ।इधर सारे बंधन टूट गए ताले खुल गए कपाट ने मार्ग दिया द्वारपाल सो गए मथुरा वासी गाढी निद्रा में लीन वसुदेव की गोद में बैठकर भगवान गोकुल के लिए चल पड़े।यमुना ने मार्ग दिया भगवान गोकुल पहुंचे ।सोई हुई यशोदा के पास श्री कृष्ण को सुला दिए ।धन्य है गोकुल जहां के लोगों को श्री कृष्ण रोकर अपने आने की सूचना देते हैं। श्री कृष्ण के रोने में प्रमोदन है।समाचार फैलते ही नंद के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की गूंज फैल गई। शास्त्रीय लौकिक कृत्य किए गए। गोकुल जो श्री कृष्ण के बिना न जाने कब से सूना पड़ा था। आनंद से भर गया ।क्षण क्षण में, कण कण में जन जन, में मन मन, में आनंद मूर्तिमान होकर नृत्य करने लगा।

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