गैरसरकारी संगठन , ने की बलात्कार पीड़ितों को शीघ्र न्याय के लिए नई विशेष त्वरित अदालतों के गठन की मांग
रिपोर्टर अजीत कुमार सिंह बिट्टू जी ब्यूरो चीफ हिंद एकता टाइम्स
बलिया ब्यूरो
* विशेष त्वरित अदालतों के कामकाज पर इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन की रिपोर्ट ‘फास्ट ट्रैकिंग जस्टिस : रोल ऑफ फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट्स इन रिड्यूसिंग केस बैकलॉग्स’ के अनुसार, इन विशेष अदालतों में मामलों के निपटारे की दर 83 प्रतिशत रही जबकि अन्य अदालतों में सिर्फ 10 प्रतिशत
•रिपोर्ट के अनुसार अगर 1000 नई विशेष अदालतों का गठन नहीं हुआ तो वर्षों तक लटके रह सकते हैं लंबित मामले
•साल भर के भीतर सभी लंबित मामलों का खात्मा करना है तो हर तीन मिनट में करना होगा बलात्कार या पॉक्सो के एक मामले का निपटारा
•रिपोर्ट में सभी फास्ट ट्रैक स्पेशल अदालतों (एफटीएससी) को संचालित रखने के अलावा एक हजार नई विशेष अदालतों की स्थापना की सिफारिश
• ने नव भारतीय नारी विकास समिति बहेरी , बलिया उत्तर प्रदेश की अपील, बलात्कार पीड़ितों को न्याय सुनिश्चित करने के लिए नई विशेष त्वरित अदालतों को गठन को गंभीरता से ले राज्य सरकार रिपोर्ट में उजागर तथ्यों का हवाले से के नव भारतीय नारी विकास समिति बहेरी , बलिया उत्तर प्रदेश निदेशक अजहर अली ने कहा, “ एक तरफ जहां हम लगातार यह सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहे हैं कि पीड़ित और उनके परिवार चुप रहने के बजाय न्याय के लिए आवाज उठाएं, लेकिन कड़वी सच्चाई यह है कि न्याय के लिए उनका यह संघर्ष अक्सर अंतहीन होता है। कचहरी के चक्कर और न्याय के बजाय तारीख पर तारीख कई बार तो पीड़ित के साथ हुए अत्याचार से भी ज्यादा असहनीय हो जाती है। रिपोर्ट साफ तौर से यह तथ्य स्थापित करती है कि और ज्यादा विशेष त्वरित अदालतों का गठन हमारे बच्चों और उनके परिवारों के लिए शीघ्र न्याय सुनिश्चित करने में सहायक होगा। हम राज्य सरकार से अपील करते हैं कि राज्य में जितनी भी विशेष त्वरित अदालतों की स्वीकृति है, उन सभी में अदालती कामकाज जारी रखना सुनिश्चित करते हुए तत्काल नई विशेष अदालतें गठित की जाएं। न्याय में देरी न्याय का हनन है और इस दुष्चक्र का अंत होना चाहिए।”
रिपोर्ट में साफ तौर पर यह तथ्य उजागर हुआ है कि विशेष त्वरित अदालतें लंबित मामलों के तेजी से निपटारे में कारगर साबित हुई हैं और इनके गठन के बाद से इनमें सुनवाई के लिए आए 4,16,638 मामलों में से 2,14,463 मामलों का निपटारा हो चुका है। महाराष्ट्र (80 प्रतिशत) और पंजाब (71 प्रतिशत) मामलों के निपटारे में शीर्ष पर हैं जबकि महज दो प्रतिशत मामलों के निपटारे की दर के साथ देश के सभी राज्यों और केंद्रशासित क्षेत्रों में पश्चिम बंगाल सबसे निचले स्थान पर है। ध्यान देने वाली बात यह है कि राज्य में 123 विशेष त्वरित अदालतों के गठन की स्वीकृति है लेकिन महज तीन अदालतें ही काम कर रही हैं।
सरकार ने आपराधिक कानून (संशोधन) विधेयक, 2018 में प्रस्तावित सख्त समयसीमा और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन करते हुए बलात्कार व पॉक्सो मामलों के तेजी से निपटारे के लिए अगस्त 2019 में स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट्स यानी विशेष त्वरित अदालतों के गठन को मंजूरी दी थी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि मौजूदा विशेष अदालतों में कामकाज सुचारु रूप से जारी रखने और नई विशेष अदालतों के गठन के लिए निर्भया फंड की अप्रयुक्त राशि का उपयोग किया जा सकता है। रिपोर्ट कहती है कि निर्भया फंड में 1700 करोड़ रुपए की अप्रयुक्त राशि बची हुई है जबकि नई अदालतों को दो साल तक चलाने के लिए 1,302 करोड़ रुपए की ही जरूरत है।