जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा बहाल करने की याचिका को सूचीबद्ध करने पर सुप्रीम कोर्ट करेगा विचार

Supreme Court will consider listing the petition to restore statehood to Jammu and Kashmir

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को जम्मू कश्मीर को समयबद्ध तरीके से राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग वाली याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने के ल‍िए विचार करने पर सहमति व्यक्त की।आवेदकों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन द्वारा मामले का उल्लेख किये जाने के बाद भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि वह तत्काल सूचीबद्ध करने की प्रार्थना पर विचार करेंगे।आवेदन में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के दस महीने बाद भी जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल नहीं किया गया है।”जिससे जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के अधिकार बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं और संघवाद की अवधारणा का भी उल्लंघन हो रहा है।”,इसमें कहा गया है कि “राज्य का दर्जा बहाल होने से पहले विधानसभा का गठन करने से जम्मू-कश्मीर में लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार की क्षमता में गंभीर कमी आएगी, जिससे संघवाद के विचार का गंभीर उल्लंघन होगा, जो भारत के संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है।”

हाल ही में जम्मू-कश्मीर में 10 वर्षों के बाद तीन चरणों में विधानसभा चुनाव हुए और पिछले सप्ताह परिणाम घोषित किए गए।

संविधान के अनुच्छेद 370 के संबंध में फैसला सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सुनाया था।

चंद्रचूड़ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के उस बयान पर भरोसा करते हुए यह सवाल खुला छोड़ दिया था कि क्या संसद किसी राज्य को एक या अधिक केंद्र शासित प्रदेशों में परिवर्तित करके राज्य के दर्जे के चरित्र को समाप्त कर सकती है।

कोर्ट ने भारत के चुनाव आयोग को पुनर्गठन अधिनियम की धारा 14 के तहत गठित जम्मू और कश्मीर विधानसभा के चुनाव 30 सितंबर, 2024 तक कराने के लिए कदम उठाने का आदेश दिया था और कहा था कि “राज्य का दर्जा जल्द से जल्द बहाल किया जाएगा”।

संविधान पीठ ने संविधान के स्पष्टीकरण I के साथ अनुच्छेद 3(ए) के तहत लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश के रूप में दर्जा बरकरार रखा, जो किसी भी राज्य से एक क्षेत्र को अलग करके केंद्र शासित प्रदेश के गठन की अनुमति देता है। इस पीठ में न्यायमूर्ति एस के कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत भी शामिल थे।

मौखिक सुनवाई के दौरान एसजी मेहता ने कहा था कि केंद्र कोई सटीक समय-सीमा नहीं दे सकता और जम्मू-कश्मीर में राज्य का दर्जा बहाल होने में “कुछ समय” लगेगा।

इस साल मई में, सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान पीठ के फैसले की समीक्षा करने से इनकार कर दिया और अनुच्छेद 370 को हटाने के फैसले को वैध ठहराने के खिलाफ दायर पुनर्विचार याचिकाओं को खारिज कर दिया।

सीजेआई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ ने खुली अदालत में पुनर्विचार याचिका को सूचीबद्ध करने की मांग करने वाली याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा कि रिकॉर्ड में कोई त्रुटि नहीं दिखती और सुप्रीम कोर्ट रूल्स, 2013 के तहत पुनर्विचार का कोई मामला नहीं बनता।

सोमवार को शीर्ष अदालत ने केंद्रीय गृह मंत्रालय की सिफारिशों पर विधानसभा में पांच सदस्यों को नामित करने की जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल की शक्ति को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया था। अदालत ने याचिकाकर्ता कांग्रेस नेता से कहा था कि वह पहले जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाएं।

सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि, “हम भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर वर्तमान याचिका पर विचार करने के लिए इच्छुक नहीं हैं और याचिकाकर्ता को भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत रिट याचिका के माध्यम से क्षेत्राधिकार वाले उच्च न्यायालय में जाने की स्वतंत्रता देते हैं।”

साथ ही स्पष्ट किया कि उसने “गुण-दोष पर कोई राय” व्यक्त नहीं की है।

जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन संशोधन अधिनियम 2013 के अनुसार सभी पांच मनोनीत सदस्यों को सरकार गठन में मतदान का अधिकार होगा।

मनोनीत सदस्यों में दो महिलाएं होंगी, दो कश्मीरी पंडित विस्थापित समुदाय से होंगे, जिनमें कम से कम एक महिला होगी और एक पश्चिमी पाकिस्तानी शरणार्थी होगा।

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